छठ ऊपी बिहार का सबसे महत्वपूर्ण माना जाने वाला पर्व चार दिनों का छठ व्रत सबसे कठिन होता हैं. इसलिए इसे छठ महापर्व कहा जाता हैं. इस व्रत को महिलाएं और पुरुष दोनों कर सकते हैं. इसमें सूर्य की पूजा की जाती हैं. छठ पूजा के तीसरे और चौथे दिन निर्जला व्रत रखकर सूर्य पूजा की जाती हैं. साथ ही सूर्य की बहन छठी मईया की भी पूजा होती हैं. छठी मईया बच्चों को दीर्घायु बनाती हैं. घर के एक दो बड़े सदस्य ही व्रत पूजा का पालन करते हैं, जो यह कठिन व्रत रखने में सक्षम होते हैं. ज्यादातर घरों की बुजुर्ग माता या दादी छठ करती हैं. घर की कोई एक दो वृद्ध मुखिया स्त्री, पुरुष बहु आदि ही छठ के कठिन व्रत पूजा का पालन करते हैं. घर के बाकी सदस्य उनकी सहायता करते हैं. बाकी लोग छठी मैया के गीत भजन गाते हैं.
क्या हैं महासंयोग
इस बार छठ महापर्व मंगलवार २४ अक्टूबर से शुरू हो रहा हैं. पहले दिन मंगलवार की गणेश चतुर्थी हैं. गणेश जी हर काम मंगल ही मंगल करेंगे. पहले दिन सूर्य का रवियोग भी हैं और ऐसा महासंयोग ३४ साल बाद बन रहा हैं. रवियोग में छठ की विधि विधान शुरू करने से सूर्य हर कठिन मनोकामना भी पूरी करते हैं. चाहे कुंडली में कितनी भी बुरी दशा चल रही हो, चाहे शनि राहु कितने भी भारी क्यों ना हों, सूर्य के पूजन से सभी परेशानियों का नाश हो जाएगा. ऐसे महासंयोग में यदि सूर्य को अर्घ्य देने के साथ हवन किया जाए तो आयु में भी वृद्धि होती हैं.
पहले दिन नहाय-खाय में सुबह नदी या तालाब कुआं या चापा कल में नहा कर शुद्ध साफ वस्त्र पहनते हैं और छठ करने वाली व्रती महिला या पुरुष चने की दाल और शुद्ध घी में लौकी की सब्जी बनाती हैं. उसमें शुद्ध सेंधा नमक ही डालते हैं. बासमती शुद्ध अरवा चावल बनाते हैं. गणेश जी और सूर्य को भोग लगाकर व्रती सेवन करती हैं और घर के सभी सदस्य भी यही खाते हैं. इन दिनों घर के सदस्य को मांस मदिरा का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए. रात को भी घर के सदस्य पूड़ी सब्जी खाकर सो जाते हैं. अगले दिन खरना में संध्या के समय गुड की खीर का प्रसाद. और उसके अगले दिन की संध्या बेला में डूबते सूर्य को अर्ग और पुनः भोर में उगते सूर्य को अर्ग देने के साथ हू इस छठ महापर्व का समापन होता हैं| खबर आजतक