आज गुजरात के गांधीनगर में आयोजित टेक्सटाइल इंडिया २०१७ में केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए प्राकृतिक रेशों की क्षेत्र समग्र वृध्दि बहुत महत्वपूर्ण हैं. और समाज के विकास के लिए उनका आर्थिक महत्व और गहरा प्रभाव भी हैं. राधा मोहन सिंह ने ये भी कहा कि प्राकृतिक रेशा भारतीय वस्त्र उद्योग की रीढ़ हैं. और वो रेशा उद्योग के कुल ६०% से अधिक का भाग हैं.
कृषि उद्योग के पश्चात भारतीय वस्त्र उद्योग लाखों लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार देता हैं. लघु और मध्यम उद्योग प्राकृतिक रेशों के उप-उत्पादों का उपयोग करते हैं दुनिया भर में ७५ मिलियन से अधिक परिवार प्राकृतिक रेशों के उत्पादन में सीधे शामिल हैं भारत में ३० लाख किसान प्राकृतिक रेशों के उत्पादन में शामिल हैं कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने बताया की वर्तमान समय में प्राकृतिक रेशों को ऐक्रेलिक, पॉलिएस्टर, इत्यादि जैसे कृत्रिम रेशों से कठोर प्रतिस्पर्धा और चुनौती का सामना करना पड़ रहा हैं
और एक सदी पहले इस्तेमाल में लाए जानेवाले रेशें केवल प्राकृतिक ही हुआ करते थे जबकि अब इनका हिस्सा ४०% से कम रह गया हैं. सन १९९० के दौरान अकेले कपास का योगदान ५०% रहा था और यही वर्तमान में विश्व परिधान बाजार में कपास का योगदान ३०% से भी कम हो गया हैं उन्होंने कहा कि संश्लेषित रेशें अपने लागत लाभ एवं ज़रूरत के अनुरूप गुणों के कारण प्राकृतिक रेशों के प्रमुख अनुप्रयोगों के क्षेत्रों में तेजी से अपनी पकड़ बना रहा हैं.

राधा मोहन सिंह ने बताया कि वर्तमान में ९० देश कपास का उत्पादन कर रहे हैं और भारतीय वस्त्र उद्योग के कुल रेशों की खपत का ६०% भाग कपास का हैं. उन्होंने बताया कि विश्व की व्यवसायिक रेशेदार फसलो में सन चौथे स्थान पर हैं. यह सभी कपडा रेशों की तुलना में सबसे अधिक प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल हैं इसके साथ ही उन्होंने में टेक्सटाइल इंडिया २०१७ में लगी कॉटन, खादी एवं जूट स्टॉल का अवलोकन भी किया|