१४०० सौ वर्षों पुरानी इस तीन तलाक की प्रथा को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया हैं. कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय की इस पुरानी प्रथा को पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ और इस्लामिक शरिया कानून का उल्लंघन करार दिया. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ में ३:२ की बहुमत से तलाक-ए-बिद्दत को निरस्त करते हुए कहा कि सरकार को इसमें दखल देते हुए छह महीने के भीतर एक कानून बनाना चाहिए. कोर्ट ने इंस्टेंट तीन तलाक को भले ही असंवैधानिक करार दिया हैं,
लेकिन इसे लेकर सवाल कई तरह के हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू करना सरकार के लिए एक चुनौती हैं. वहीं सवाल यह भी है कि उन महिलाओं का क्या होगा, जिन्हें हाल के दिनों में तीन तलाक भुगतना पड़ा हैं. प्रसिद्ध वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता महमूद प्राचा कहते हैं, सुप्रीम कोर्ट का फैसला उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता, इसमें सायरा बानों जैसी तीन तलाक पीड़िताओं को कोई राहत नहीं दी गई और इसके अलावा इंस्टेंट तलाक देने वाले पुरुषों के लिए सज़ा का भी कोई प्रावधान नहीं हैं. प्राचा कहते हैं, तीन तलाक पर सुनवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी ट्रिपल तलाक के खिलाफ नियम बनाने की बात कही थी.
अब गेंद केंद्र के पाले में है, उसे इस पर कानून बनाना चाहिए. वहीं इस मामले में मुस्लिम संगठनों की तरफ से नया कानून बनाने में उनसे राय-मशविरे की मांग उठ रही हैं. कोलकाता की प्रसिद्ध नाखुदा मस्जिद के इमाम मौलाना मोहम्मद शफीक काजमी ने कहा कि कोई नया कानून बनाने से पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और शरीया कानून के विशेषज्ञों के साथ सलाह-मशविरा होना चाहिए| खबर आजतक