भारत के हर व्यक्ति पर ६२ हजार रुपये से ज्यादा का कर्ज
शुरुआत हो चुकी हैं २०१९ की और नए साल में हर किसी की यही कोशिश होगी कि वह फाइनेंशियल तौर पर मजबूत हो लेकिन यह जानकर हैरानी होगी कि भारत के हर व्यक्ति पर औसतन ६२ हजार रुपये से ज्यादा का कर्ज हैं. यह कर्ज कैसे और क्यों हैं, इसका गणित हम आपको समझाते हैं. दरअसल, हाल ही में वित्त मंत्रालय के सरकार कर्ज प्रबंधन ने तिमाही रिपोर्ट दी हैं. इस रिपोर्ट में बताया गया हैं कि सरकार का कुल कर्ज सितंबर के अंत तक बढ़कर ८२ लाख करोड़ रुपये पहुंच गया.
देश की १३४ करोड़ की आबादी के हिसाब से गणना करें तो हर नागरिक पर करीब ६२ हजार रुपये का कर्ज हैं. रिपोर्ट के मुताबिक इसी साल जून के अंत तक सरकार पर यह कर्ज ७९.८ लाख करोड़ रुपये था. वहीं तब इसी आबादी के अनुसार आप पर कर्ज ५९ हजार ५५२ रुपये था. यानी सिर्फ तीन महीनों में आप पर २४४८ रुपये का कर्ज बढ़ा हैं. वहीं सरकार पर इन तीन महीने में २.२ लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज बढ़ा हैं.
वित्त मंत्रालय की इस रिपोर्ट की मानें तो सरकार पर कर्ज बढ़ने की कई वजह हैं. पहली सबसे बड़ी वजह कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि हैं. इसके अलावा डॉलर के खिलाफ रुपये के मूल्य में गिरावट और अमेरिकी फेड-भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दरों में बढ़ोतरी से भी देनदारी में बढ़ोतरी हुई हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया गया हैं कि करीब २६.६ फीसदी बकाया सिक्युरिटीज की मैच्योरिटी अवधि पांच साल से कम हैं.
२४.६ फीसदी इंश्योरेंस कंपनियों के लिए देनदारी हैं
जबकि सितंबर २०१८ के अंत तक ४१.४ फीसदी कॉमर्शियल बैंकों के लिए और २४.६ फीसदी इंश्योरेंस कंपनियों के लिए देनदारी हैं. वहीं १० साल की मैच्योरिटी वाली सरकारी बांडों पर यील्ड ११ सितंबर, २०१८ को बढ़कर ८.१८ प्रतिशत पर पहुंच गई. वहीं ११ साल की मैच्योरिटी अवधि वाली बांडों को छोड़ अन्य सभी बांडों पर यील्ड वृद्धि हुई हैं. बांड पर मिलने वाले रिटर्न या कमाई को यील्ड कहते हैं. बांड यील्ड में जोखिम कम होता हैं इसलिए इसमें रिटर्न भी कम होता हैं.
सरकार या आप पर यह क़र्ज़ अभी और बढ़ने वाला हैं. दरअसल, अमेरिका की आर्थिक नीतियों की निगरानी करने वाली संस्था रिजर्व फेड ने हाल ही में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की थी. इसके साथ ही इस बात के संकेत दिए थे कि आने वाले दिनों में ब्याज दरों में फिर बढ़ोतरी की जा सकती हैं. बढ़ोतरी के इस संकेत का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता हैं. हालांकि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती कर इस क़र्ज़ को रिकवर करने में मदद कर सकता हैं.
अगर कर्ज बढ़ता गया तो इसका असर महंगाई के जरिए होगा. आरबीआई का भी मानना हैं कि आने वाले वर्ष में महंगाई का खतरा बढ़ रहा हैं. दरअसल, बीते महीने मौद्रिक समीक्षा नीति के बाद आरबीआई द्वारा जारी किए गए समीक्षा ब्यौरा में तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा कि जहां वित्त वर्ष २०१८-१९ की दूसरी छमाही में महंगाई २.७ से ३.२ फीसदी हो सकती हैं वहीं वित्त वर्ष २०१९-२० की पहली तिमाही के दौरान यह ३-८ से ४.२ फीसदी हो सकती हैं| खबर आजतक