क्या छिन जाएगा डालमियानगर के हजारों गरीब-बेसहारो का आशियाना ?

क्या छूट जायेगा चिड़ियों का घोंसला जो कई दशकों से था सहेजा ? पूछ रही हैं डालमियानगर की गरीब जनताडालमियानगरडालमियानगर

मैं बात कर रहा हु बिहार राज्य के रोहतास जिले में इस्थित बंद पड़े रोहतास उद्योग समूह (लिक्विडेशन में) जो डालमियानगर में हैं।

जिसके 1984 में अचानक बंद होने के कारण हजारों लोगो की जिंदगियां तब तबाह हो गई थी,

लोग बेसहारा मजबूर हो के टूट गए थे कुछ ने तो आत्महत्या तक का प्रयास कर लिया था।

डालमियानगरडालमियानगरउस वक्त के इतने बड़े डालमिया उद्योग समूह में ना जाने देश के किन-किन कोनो से लोग आए थे,

की दो पैसा कमाएंगे और अपना जीवन बसर करेंगे।

खैर जैसा होनी को मंजूर था हुआ लोग टूट गए बेबस मजबूर हो गए समय ऐसा आया की लोग दाने दाने के मोहताज हो गए।

उस समय बिहार के कई जिलों को रोजागर दिया करता था

डालमियानगर उद्योग यानी रोहतास इंडस्ट्रीज उस समय जो बिहार के कई जिलों को रोजागर दिया करता था,

दूर दराज इलाको तक डालमिया उद्योग द्वारा रेल पटरियां बिछाई गई थी रॉ मटेरिल के लेन देन हेतु,

परन्तु उसके अपने ही एंप्लॉई/मजदूर/स्टाफ और बड़े-बड़े अधिकारी मजबूर हो गए कंपनी बंद हो जाने के कारण,

कितनो को तो रिक्शा ठेला खींचना पड़ा जो अधिकारी पदों पर होते थे, कई ने सब्जी की रेड़िया लगाई कुछ दिहाड़ी मजदूर बन गए।

धीरे धीरे लोगो ने अपने आप को संभालने की कोशिश की और उनके पास

एक आसरा रह गया डालमिया के क्वार्टर्स जो कम से कम उनके सिर छुपाने का सहारा तो थे।

आप सोचिए जरा वो अवस्था क्या रही होगी अचानक आपकी आमदनी शून्य हो जाए

खाने का निवाला खत्म हो जाए रोजगार छीन जाए कैसा लगेगा क्या होगा तब।

पूरे 40 से 50 वर्षो की गाथा साझा कर रहा हु

आप सभी गौर फरमाइएगा मैं चंद 5-7 सालो का जिक्र नहीं कर रहा

मैं पूरे 40 से 50 वर्षो की गाथा साझा कर रहा हु आप के बीच इस उम्मीद से की हम सभी को चैन की सास मिलेगी।

तो आगे हुआ यू की कई लोग यही रह गए काफी लोगो ने पलायन भी किया था

बाकी कुछ तो बेहद मजबूर थे जो उन्हें यही रहना पड़ा बिना बिजली-पानी के बीच कठिनाइयों में।

तब लोगो ने हैंडपंप का सहारा लिया अपनी प्यास बुझाने के लिए,

जो एक समय में कंपनी द्वारा प्रदान की गई फिल्टर्ड स्वक्ष पानी पीते थे।

समय बीतता गया डालमिया के खंडहर होते घरों में आस पास के गरीब लोग

अपने डालमियानगर में रह रहे रिश्तेदारों के यहां रहने भी आए

क्योंकि समय के साथ उनको भी जरूरत थी लोगो की सहारे की

और लोगो को जरूरत थी शहर की व्यवस्था और वहा की शिक्षा की,

पैसा नही था गुजर बसर के लिए

अपने बच्चो के सफल भविष्य के लिए पर पैसा नही था गुजर बसर के लिए

क्योंकि उनका भी तो सहारा डालमिया उद्योग ही था कही न कही,

मैने बताया था न पहले की कई जिलों के लोगो को व्यवसाय व रोजगार मिला था इस समूह के द्वारा।

आप कल्पना कर सकते हैं दो साल के कोरोना काल में जब इतनी तबाही हुई लोगो की रोजी रोटी छीन गई लोग तबाह हुए,

तो जरा सोची करीब 1/2 शताब्दी से लोगो ने क्या क्या झेला देखा और उसका सामना किया होगा।

यहां पे लोगो का बसना वो चाहे डालमिया के कर्मचारी हो या बाहरी व्यक्ति हो सब गरीबी के तंबू में एक समान थे

सबका एक ही सहारा था यहां के वीरान व खंडहर पड़े 1476 क्वार्टर्स जो जर्जर हालात में थे,

जिनकी हल्की फुल्की मरमत करा कर हजारों लोग जीवन बसर कर रहे हैं कारण सिर्फ ये हैं की

डालमियानगर से 3KM की दूरी पे “डेहरी ऑन सोने” जैसा शहर जहा रेलवे स्टेशन भी हैं,

और 20 – 20KM की दूरी पे सासाराम और औरंगाबाद जैसा जिला होना।

सही समय पे सही सुविधाएं उपलब्ध हो

हर इंसान की कामना होती हैं एक शहरी परिवेश में रहे ताकि बच्चो को अच्छी शिक्षा मिले,

बुजुर्गो को सही समय पे सही सुविधाएं उपलब्ध हो

यदि इनमे कोई गंभीर रोगी हो तो उसे सही इलाज मिले बस इतनी सी ख्वाइश

और जरूरत के लिए लोग बसे हुए हैं रोहतास इंडस्ट्री के 1476 क्वार्टर्स में।

पर ये ना समझिए की लोग फ्री में रहते हैं पटना हाई कोर्ट द्वारा अधीन लिक्विडेशन में गई

ये डालमिया कंपनी के चाहे कर्मचारी हो या बाहरी लोग जो भी इन खंडहरों में अपनी गरीबी के कारण रह रहे हैं

उनसे किराया (कंपनसेशन के नाम पे) भरपूर लिया गया हैं

किसी से कम किसी से ज्यादा और बची कूची कसर 2021 में पूरी कर ली गई

एक प्लानिंग के तहत, मैने जिक्र किया था न लोग बिना बिजली पानी के थे तो उन सभी हजारों मजबूर लोगो को एक झांसा दिया गया,

ये उनके लिए था जो गरीबीवश लिक्विडेशन द्वारा वो तय किराया नहीं दे पाते थे

इसी में कुछ दबंग भी थे जो जान बूझ के किराया नहीं देते थे या सबके लिए था पता नही।

खैर अब ये रास्ता सटीक था सब लोगो के किराए को अपटू डेट करने का

2021 में लोग खुश तो बेहद थे की बिजली आयेगी घर शहर रौशन होगा।

कई दशक बिना बिजली के ही गुजार दिए

जरा सोचिए दुनिया आज चांद पे जाने की बात कर रही हैं

और डालमियानगर के लोगो ने कई दशक बिना बिजली के ही गुजार दिए

पर इसमें एक षड्यंत्र कहिए या नियम, ये था कि पहले तो पूरा बकाया किराया जमा करना होग

और उसके पश्चात एक सपतपत्र देना होगा

जिसमे ये लिखा था की “मैं समय से किराया दूंगा और पटना हाई कोर्ट के आदेश पे घर खाली कर दूंगा”

यानी जिस घर में कई दशक बिताए अब उस घर से बेघर हो जाए जहा किराया भी दिया गया हैं।

क्या एक अति महत्पूर्ण आवश्यकता बिजली जो मानव का अधिकार भी हैं

उसे पाने के लिए उसके बेघर होने का शपतपत्र लेना जरूरी था।

सभियो ने दशकों से किराया भी दिया हैं

और हसीं तो तब आती हैं जब इन सभी वाक्यों के बाद न्यायालय के न्यायमूर्ति जी

ये आदेश पारित करते हैं की जबरन अवैध कब्जा किए 1476 घरों को खाली करे सभी,

जिन सभियो ने दशकों से किराया भी दिया हैं और

जरूरत आने पे पटना लिक्विडेशन प्रबंधन का कहना मान शपतपत्र भी दिया हैं,

और ये उसी बेंच का आदेश हैं जिस बेंच ने कभी हमे राहत देने का आश्वासन दिया था।

परंतु पता नही अचानक क्या होता हैं की न्याय की मूर्ति जैसे न्यायाधीश जी भी अपनी आंखों पे पट्टी बांध लेते हैं

और शायद बिना कुछ सोचे समझे डालमिया की कई हजार गरीब और लाचार जनता पर

घर खाली करने का कहरभरा आदेश सुना देते हैं।

अब आगे बढ़ते हैं लिक्विडेशन की नियति ये हैं की धीरे धीरे डालमिया की संपति बेची जाए पर क्या लोगो को बेसहारा व बेघर कर के

वैसे आप सभी को मालूम होना चाहिए की डालमिया की संपति बहुत दूर दूर तक हैं जो पटना हाई कोर्ट के अधीन हैं,

डालमिया कारखाने का बड़ा हिस्सा कई सौ करोड़ में बिका

जिनमे से सबसे पहले 2004-2005 के आस पास कुछ खाली पड़े घर और फ्लैट्स को बेचा गया जो उचित था क्योंकि वो खाली थे,

फिर जब लालू यादव रेल मंत्री थे उस वक्त डालमिया कारखाने का बड़ा हिस्सा कई सौ करोड़ में बिका

और शिलान्यास के दौरान सोनिया गांधी तक भी आई,

यहां के लोगो में उम्मीद जगाई गई की यहां रेल कारखाना खुलेगा और एक बार फिर डालमियानगर प्रगति पर चल पड़ेगा।

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि फैक्ट्री का सारा कबाड़ रेल इंजन समेत और इंफ्रास्ट्रक्चर को बेच दिया गया रेलवे द्वारा और फैक्टर खोखली हो गई।

उसके बाद रोहतास में भी कोई भूखंड नीलम हुआ जो खाली था। उसके बाद लिक्विडेशन की नजर वापस से घरों को बेचने की ओर आती हैं।

2022 में फिर कुछ खाली पड़े घर नीलम किए जाते हैं, जिसे बड़े बड़े पूंजीपतियों द्वारा उसकी बोली 72% महंगे दर तक पहुंचा खरीदा जाता हैं,

जो रेट किसी आम नागरिक के बस की बात नहीं और डालमियानगर की गरीब जनता तो उतने पैसे का सोच भी नही सकती।

किरायेदारो को अवैध कब्जाधारी बताया जाता हैं

पर पता नही फिर क्या हुआ अचानक से आदेश कर दिया जाता हैं की सभी किरायेदार घर खाली करे

यहां तक कि उस आदेश में सभी रह रहे किरायेदारो को अवैध कब्जाधारी बताते हैं जज साहब

जिन सभी के पास किराए देने की रशिद मौजूद होगी।

हालाकि की कंपनी एम्प्लॉय को बाहरी लोगो की तुलना में किराया शायद कुछ कम लगता हैं पर लगता सबको हैं मेरे हिसाब से।

आप को बता दे अभी डालमिया की संपत्ति में इतने खाली भूखंड बचे हैं जिसका हिसाब नही,

तो कोर्ट इन घरों को ही बेचने के पीछे क्यों पड़ा हैं पहले उन खाली पड़े जमीनी भाग को बेचे जहा किसी का गुजर बसर नही।

खैर यहां के रहने वाले लोगों ने भी कहा की हमे बेच दीजिए एक उचित मूल्य जो हम देने में समर्थ हो,

लोगो को घरों से बेघर कर के

परंतु कोर्ट को ये मंजूर नहीं, उन्हे पूंजीपतियों के बीच ही नीलामी करानी हैं लोगो को घरों से बेघर कर के।

यदि न्यायालय रेवेन्यू ही जेनरेट करना चाहता हैं तो क्या घर बेचना ही रास्ता हैं जहा लोग बसे हैं कई दशकों से।

क्या न्यायालय द्वारा हम लोगो को ही किराए पे मकान नही दिया जा सकता भले अभी के अनुसार किराए की रकम कुछ प्रतिशत बढ़ा दी जाए

और दो-तीन साल पर उस रकम में 5-10% की वृद्धि होती रहे

जैसा शायद “डोरंडा की मेकॉन कंपनी ने किया था अपने कर्मचारियों के साथ”,

क्या न्यायालय इसे लीज नही कर सकता 15-20 साल की अवधि के लिए

और अवधी पूरी होने पे लीज की रकम को बढ़ा के लीज रिन्यू करे,

या सालाना का एक दर भी तय कर सकती हैं न्यायालय इन सभी तरीको से भी कोर्ट को रेवेन्यू जेनरेटो होगा

और अनंत समय तक रेवेन्यू पाता रहेगा कोर्ट और लोगो को बेघर भी नही होना पड़ेगा।

जनाब यहां की सच्चाई हैं लोगो की जेबें फटी हुई हैं सिर्फ मुट्ठी में बंद सिक्के ही हैं,

सच मानिए तो बहुतों के पास तो यहां के सिवाए अपना कोई गांव घर भी नही जहा वो जा के रह सके

बहुत लोग की आर्थिक अवस्था ऐसी नही की वो 4000-5000 रुपए का किराया दे के कही मकान ले सके

और इतने से कम में तो कही घर मिलेगा भी नही।

मानते हैं संपत्ति कोर्ट के अधीन हैं पर इसका मतलब ये तो नही की कोर्ट लोगो को बेघर कर दे,

यू देखा जाए तो भारत देश की सभी संपत्तियां भारत सरकार के अधीन हैं

सरकार जब चाहे वहा की जमीन ले सकती हैं और वहा के रहने वाले को मुआवजा देती हैं

ताकि वो उस मुआवजे की रकम से कही और गुजार बसर कर सके,

देश की सभी संपत्तियां भारत सरकार के अधीन

उसके बावजूद भी लोग सराकर को जमीन टैक्स और मकान टैक्स के रूप में किराया ही तो देते हैं,

जैसे हम लोगो ने भी दिया हाई कोर्ट को, बस वहा संपत्ति उस स्वामित्व को रजिस्टर्ड होती हैं और वो किराया देता हैं

यहां स्वामित्व पटना कोर्ट हैं और हम किराएदार जिसने समय समय पर किराए देने के बावजूद भी

समय पर किराए देते रहने का सपतपत्र दिया हैं।

हम सभी ऐसे किराएदार हैं इतने दशकों का लंबा वक्त गुजारा यहां,

हम सभी यहां के इस्थाई निवासी जैसे महसूस करते हैं,

यहां तक कि हमारे तो मतदाता पहचान पत्र से ले कर आधार व पैन कार्ड तक पे यही का स्थाई पता अंकित हैं।

यहां हम सभी ने एक साथ अपने परिवार में जीना मरना, शादी ब्याह, तीज त्योहार सब देखा बिताया हैं।

हर नागरिक को अपने हाई कोर्ट का फैसला मानना चाहिए

खैर जो भी हो भारत के हर नागरिक को अपने हाई कोर्ट का फैसला मानना चाहिए

और यदि किसी को उचित न्याय ना मिले तो उसके आगे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए

वही गुहार लगानी चाहिए वही न्याय मिले शायद।

क्योंकि फिर सिर्फ घर नही खाली होंगे शायद दुबारा नौबत आ जाए लोग खुदखुसी कर ले जो सबसे लाचार मेहसूस करे,

काफी रोजी रोजगार बंद होंगे कितनो की पढ़ाई और कितनो की कमाई छूट जाएगी

ये तो डालमिया के बसेरो के साथ होगा जो यहां कुछ पाने की आस में हैं।

छोटे व्यवसाई भी टूट जायेंगे

परंतु यहां के लोगो पे भी आश्रित हैं कुछ लोग जैसे आस पास के जो

सब्जी बेचने वाले, ठेले वाले, पान वाले, पेपर वाले, दूध वाले, किराना दुकान वाले, रिक्शे-ऑटो वाले,

साफ सफाई करने वाले मजदूर व छोटी छोटी अन्य दुकानें और उनका व्यापार

सब ठप पड़ जायेगा यहां की 10000 से 15000 की जनता के जाने से वो छोटे व्यवसाई भी टूट जायेंगे जिनकी रोजी रोटी हमारे बीच से हैं।

कोर्ट को ये भी समझना चाहिए इतनी भारी जनसंख्या जहा हो वहा से जुड़े बाजार व्यवसाय भी,

सब एक बार फिर ठप पड़ जायेगा जैसा 1984 में हो चुका हैं कोर्ट को अपना आदेश देने से पहले

एक बार मानवता के अधिकार रोटी, कपड़ा और मकान के बारे में भी सोचना चाहिए था और यहां की गरीब जनता के पक्ष में भी ना की….।

इस मुद्दे पे राजनीतिक रोटी सेकना तो बहुत से लोग चाहते हैं और लोगो को गुमराह कर गलत गतिविधियों को अंजाम देने की फिराक में हैं,

पर इससे काम नही चलेगा ये न्यायालय का मुद्दा हैं इसे न्यायालय ही सुलझाएगा यही उचित हैं और विधान भी वही न्याय देंगे हम सभी को।

सुप्रीम कोर्ट से हैं आस

यहां के लोगो को अब सुप्रीम कोर्ट से ही आस हैं, हम उम्मीद करते हैं सुप्रीम कोर्ट से

इन्हे राहत मिलेगी और सुप्रीम कोर्ट से उचित न्याय मिलेगा गा ।

कभी कभी तो ये सोच के दिल दहलजाता हैं की उन लोगो का क्या होगा जिनका कोई हैं नही,

ऐसे शख्स या ऐसी बुजुर्ग जोड़ी जिनका ना कोई आगे हैं ना कोई पीछे जो मानिए तो अनाथों की भांति हैं

उन्हें कोई शरण तक देने वाला नही वो तो पहले से ही मांग चुंग कर अपना दो वक्त का गुजारा कर रहे हैं।

आर्थिक के साथ शारीरिक हालात भी जर्जर

बहुत लोग ऐसे भी हैं जो On Bed हैं उनके आर्थिक के साथ शारीरिक हालात भी जर्जर हैं,

उन लोग के तो दिल की धड़कने ही रुक जाएंगी इन सभी घटनाओं को देख के,

उनकी सांसे छूट जाएंगी यही शायद फिर उनके शरीर को पंचतत्व ही नसीब होगा न्याय के बजाए।

और यदि ऐसा हो गया तो कही मंजर अंजोर की बंद हुई फक्ट्री जैसा ना हो जाए,

जहा आज लोग दिन में भी जाने से डरते हैं,

आज की तारीख में वहा एक परिंदा भी नहीं दीखता,

वहा की इमारते ढह चुकी हैं और भूमि बंजर पड़ी हुई हैं|

लेखक के बचाओं में लेखक की पहचान को गुप्त रखा गया हैं

 

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