महाराष्ट्र के मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट) के नेता छगन भुजबल ने सोमवार को कहा कि अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) वर्ग के तहत मराठों को आरक्षण देने के लिए पिछले दरवाजे से किये जा रहे प्रयास का विरोध किया जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा कि हिंसा और दबाव की रणनीति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उनकी यह टिप्पणी राज्य के विभिन्न हिस्सों में मराठों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में आई है।
भुजबल ने इस बात पर जोर दिया कि वह मराठों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे अलग से दिया जा सकता है।
भुजबल ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘प्रदर्शनकारी अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बल और धमकी का इस्तेमाल कर रहे हैं।
मराठवाड़ा क्षेत्र में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर जारी विरोध प्रदर्शन के दौरान आगजनी और हिंसा की घटनाओं में वृद्धि देखी गई।’’
उन्होंने कहा कि जब मराठा नेताओं को एहसास हुआ कि उन्हें सीधे (ओबीसी कोटा के बाहर) आरक्षण नहीं मिलेगा, तो उन्होंने इसे पिछले दरवाजे से (ओबीसी वर्ग के भीतर) प्राप्त करने का प्रयास किया।
उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसी रणनीति को स्वीकार नहीं करेंगे और अपने आरक्षण की रक्षा के लिए लड़ेंगे।’’ संविधान ने सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों के उत्थान के लिए आरक्षण प्रदान किया है और यह गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है।
मंत्री ने कहा, ‘‘संविधान के मुख्य निर्माता बी आर आंबेडकर ने सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण प्रदान किया है, ना कि आर्थिक मानदंडों के आधार पर।’’
महाराष्ट्र सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर मराठा समुदाय के सदस्यों को कुनबी प्रमाणपत्र देने की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिए गठित न्यायमूर्ति संदीप शिंदे (सेवानिवृत्त) समिति का दायरा बढ़ा दिया है। मनोज जरांगे ने हाल ही में सरकार के आश्वासन पर अपना अनिश्चितकालीन अनशन वापस ले लिया था।
जरांगे की मांगों में मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र दिया जाना भी शामिल है ताकि उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्षण मिल सके।
जरांगे के मुताबिक, उन्होंने राज्य सरकार को मराठा कोटा लागू करने के लिए 24 दिसंबर तक की समयसीमा दी है, लेकिन राज्य सरकार ने दो जनवरी तक का समय मांगा है।
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