नयी दिल्ली। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि देश में नक्सलवाद की समस्या अगले दो-तीन साल में समाप्त हो जाएगी। उन्होंने दावा किया कि छत्तीसगढ़ के एक छोटे से क्षेत्र को छोड़कर समूचा देश इस खतरे से मुक्त हो चुका है। शाह ने शनिवार देर रात एक साक्षात्कार में यह भी कहा कि पशुपतिनाथ से तिरुपति तक तथाकथित नक्सल गलियारे में माओवादियों की कोई मौजूदगी नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘देश से नक्सलवाद समाप्त हो रहा है। कभी पशुपतिनाथ से तिरुपति तक के नक्सल कॉरिडोर के बारे में कुछ लोग कहा करते थे। अब झारखंड नक्सलियों से पूरी तरह मुक्त हो गया है। बिहार पूरा मुक्त हो गया। ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश भी पूरे मुक्त हो गए हैं। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश भी पूरे मुक्त हो गए हैं।’’ शाह ने कहा कि छत्तीसगढ़ में यह पूरा मुक्त नहीं हो पाया है और वहां के कुछ हिस्सों में अब भी नक्सली सक्रिय हैं क्योंकि पिछले पांच साल से राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।
उन्होंने कहा कि पांच महीने पहले जब से राज्य में भाजपा सरकार ने सत्ता संभाली है, तब से छत्तीसगढ़ को नक्सलियों से मुक्त कराने का काम शुरू हो गया है। उन्होंने कहा, ‘‘जब से हमारी सरकार (छत्तीसगढ़ में) बनी है, तब से करीब 125 नक्सली मारे गए, 352 से अधिक को गिरफ्तार किया गया और करीब 175 ने आत्मसमर्पण किया। अगर आप आज (25 मई) के आंकड़े को भी गिन लें तो करीब पौने दो सौ ने आत्मसर्मपण किया है। यहां मैं सिर्फ पिछले पांच महीनों के आंकड़ों की बात कर रहा हूं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अगले 2 साल के अंदर या 3 साल के अंदर देश नक्सल समस्या से मुक्त हो जाएगा।’’ छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में 16 अप्रैल को सुरक्षाकर्मियों ने 29 नक्सलियों को मार गिराया था। इसमें नक्सलियों के कुछ वरिष्ठ कैडर भी शामिल थे। वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ राज्य की लड़ाई के इतिहास में एक ही मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों की यह सबसे अधिक संख्या थी। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वामपंथी चरमपंथ की घटनाएं 2004-14 के दशक में 14,862 से घटकर 2014-23 में 7,128 हो गई हैं।
वामपंथी उग्रवाद के कारण सुरक्षा बलों की मौतों की संख्या 2004-14 में 1750 से 72 प्रतिशत घटकर 2014-23 के दौरान 485 हो गई है और उक्त अवधि में नागरिकों की मौत की संख्या 4285 से 68 प्रतिशत घटकर 1383 हो गई है। साल 2010 में हिंसा वाले जिलों की संख्या 96 थी, जो 2022 में 53 प्रतिशत घटकर 45 हो गई। इसके साथ ही, हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या 2010 में 465 से घटकर 2022 में 176 हो गई। पिछले पांच वर्षों में 90 जिलों में 5,000 से अधिक डाकघर स्थापित किए गए हैं, जहां माओवादियों की उपस्थिति है या जहां अतीत में चरमपंथियों की उपस्थिति थी।
अधिकारियों ने बताया कि सर्वाधिक प्रभावित 30 जिलों में 1,298 बैंक शाखाएं खोली गईं और 1,348 एटीएम चालू किए गए हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 2,690 करोड़ रुपये की लागत से कुल 4,885 मोबाइल टावरों का निर्माण किया गया और 10,718 करोड़ रुपये की लागत से 9,356 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया गया। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 121 एकलव्य आवासीय विद्यालय, 43 आईटीआई और 38 कौशल विकास केंद्र स्थापित कर स्थानीय युवाओं को रोजगार दिया जा रहा है।
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